जैम एक स्वादिष्ट एवं
स्वास्थ्यवर्धक पदार्थ है। यह पदार्थ परिरक्षण द्वारा तैयार किये हुए फलों का
परिवर्तित रूप है। जैम बनाने के लिए फलों का उपयोग किया जा सकता है।
फलों को साफ पानी से
धोना चाहिए ताकि अभिगलित गंध निकल जाये। इसके साथ-साथ अवांछनीय भाग भी अलग कर दें।
इसके बाद फलों को छोटे-छोटे टुकडों में काट लेना चाहिए। कुछ फलों को छीलना तथा बीज
निकालना आवश्यक होता है क्योंकि वे कड़वे होते है जैसे पपीता आदि। कटे हुए फलों
में कुछ पानी डालकर उन्हें उबाल लेना चाहिए। पानी की मात्रा फलों पर निर्भर करती
है। रसदार फलों में पानी बहुत कम या नहीं भी डाला जा सकता है। जैसे- स्ट्राबेरी, रसभरी में फलों के वजन का चैथा भाग। परन्तु
कड़े फलों में वजन के बराबर से लेकर सवाया तक पानी डाला जा सकता है। फलों को
उबालने के दौरान कुचल देना चाहिए ताकि फलों के बड़े टुकडे न रहने पायें। शक्कर
मिलाना जब टुकड़े मुलायम हो जायें तब शक्कर मिला देनी चाहिए। फलों में शक्कर की
मात्रा फलों के वर्ग, उनकी परिपक्वता, कोटि व अम्लता पर निर्भर करती है। मीठे फलों
में खट्टे फलों के अपेक्षा कम
शक्कर की आवश्यकता होती है। आमतौर पर मीठे फलों के वजन का तीन चैथाई भाग तथा खट्टे फलों में बराबर
की शक्कर मिलानी चाहिए।
यह जानने के लिए कि जैम
तैयार हो गया है या नहीं, निम्न लक्षणों को ध्यान में रखना चाहिए।
1. जैम को चम्मच में लेकर कुछ ठंडा करके गिराने
पर तह बनकर गिराना चाहिए, बहना नहीं चाहिए।
2. जैम प्लेट पर रखने से यदि उसके चारों ओर पानी
का घेरा हो जाता है तो उसे तैयार नहीं समझना
चाहिए।
पेक्टिनयुक्त फलों को
पानी में उबालकर निकाले गये रस को शक्कर व अम्ल के साथ पकाकर जमे हुए अर्ध ठोस उत्पाद को जैली कहते है। अच्छी जैली में
पेक्टिन, शक्कर, अम्ल व पानी एक निश्चित अनुपात में होने चाहिए। जैली के लिए उचित फल पेक्टिन फलों की कोशिकाओं में उपस्थित होती
है। इसका परिणाम एक फल से दूसरे फल व एक
किस्म से दूसरे किस्म मे अलग-अलग होता है। ऐसे फल जिसमें पेक्टिन व अम्ल की मात्रा
ज्यादा हो, जैली बनाने के लिए उपयुक्त है। पेक्टिन और
अम्लता की प्रचुरता वाले फलः खट्टा
सेब, खट्टी ब्लैक बेरी, क्रेन बेरी, गूज बेरी, अंगूर, खट्टे अमरूद, गलगल खट्टा, खट्टे अलूचे, करौंदा आदि। कम पेक्टिन और अम्लता वाले फल सेब, ब्लैक बेरी, खट्टी चेरी, थाम्पसन सीडलेस अंगूर, अलूचे, लोकाट।
फलों को स्वच्छ पानी
में धोएँ। फलों पर किसी तरह का छिड़काव किया गया हो, तो इन्हें तनु नमक के तेजाब से अच्छी तरह साफ
करना चाहिए और इसके बाद स्वच्छ पानी से साफ करना चाहिए। तत्पश्चात् छिलके व बीज
सहित फलों को छोटे-छोटे भागों में विभक्त कर दें। कुछ फल जैसे कि गलगल, नारंगी आदि में छिलके के बाहरी पीले हिस्से को
निकालना आवश्यक है क्योंकि इससे
कड़वाहट बढ़ जाती है। इसी तरह पपीते के फल को भी छीलना आवश्यक है।
स्वच्छ पानी में फलों
के टुकड़ों को उबालना चाहिए। पानी की मात्रा फलों के अनुसार रखनी चाहिए। साधारण
तौर पर पानी निश्चित मात्रा में ही उपयोग में लाना चाहिए। आवश्यक हो तो निस्तारण
दो या तीन बार किया जा सकता है। एक किला सेब में 1.25 कि.ग्रा. पानी, एक कि.ग्रानारंगी व अमरूद में2.50 कि.ग्रा. पानी पर्याप्त है। अंगूर से
जैली बनाते सयम पानी मिलाना आवश्यक है। उबालते समय प्रति कि.ग्रा. फल में दो ग्राम
साइट्रिक अम्ल डालने से पेक्टिन निस्सारण अच्छा होता है। उबाल 20-30 मिनट तक ही होना चाहिए। ज्यादा उबालने
से पेक्टिन बिगड़ जाता है तथा जैली भी गंदेली जमती है। खोलने से प्रोटोपेक्टिन, पेक्टिन में परिवर्तित हो जाता है और हमें
पेक्टिन ज्यादा मात्रा में उपलब्ध होती है। इस उबाले हुए रस को मोटे कपड़े से छान
लेना चाहिए। रस के निर्मलीकरण के लिए रात
भर शीतल वातावरण में रखिए और सुबह साइफन विधि से निथार लीजिए जिससे कि स्वच्छ
पेक्टिन का रस प्राप्त हो जाये।
अच्छी जैली जमाने के
लिए उपर्युक्त निस्सारित रस में 0.5-1.0 प्रतिश पेक्टिन होना चाहिए। इससे अगर ज्यादा
हो तो जैली कठोर हो जाती है और कम हो तो जैली जम नहीं पाती। जैली के लिए आवश्यक
पेक्टिन, जल, अम्ल व शक्कर निम्न अनुपात में आवश्यक है।
पेक्टिन 1.0 प्रतिशत, शक्कर60-65 प्रतिशत, अम्लता 1.0 प्रतिशत तथा जल 33-38 प्रतिशत।
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